भारत को आजाद हुए 75 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है। हमने बैल गाड़ी से AI तक का सफर तय किया है और ये सिलसिला जारी है। भारत ने इन सालों में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। आज हम अमृतकाल में हैं जहां माना जा रहा कि सबकुछ ‘ऑलमोस्ट पर्फेक्ट’ है। लेकिन जो मूल बात है वो कहींं गुम है ‘आजादी’। क्या सब आजाद हैं? हैं, तो कितनी आजादी है?
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हमारे पुरखों ने संविधान में अधिकारों की खूब बातें कही हैं। हमें बोलने, लिखने, पढ़ने की आजादी दी गई है। धर्म चुनने, घूमने के अधिकार मिले है। भारतीय रूढ़िवादी समाज ने कानून के डर से ही सही इन अधिकारों को स्वीकृति तो दी। नहीं मिली स्वीकृति तो प्रेम करने के अधिकार को। नहीं मिली मोहब्बत करने की आजादी। साल दर साल देश विकसित होता गया, लेकिन ये समाज मानसिक विकृत हुआ है।
सैकड़ों साल पहले जितनी घृणा थी प्रेम से आज तक बरकरार है। तीर-कमान और तलवारों से युद्ध के जमाने से मिसाइल वाले युग तक सबकुछ बदल गया है, नहीं बदला है तो सिर्फ समाज का प्यार से नफरत करना। शहर के चौराहे पर युवक को सरेआम गोली मार दी जाती है, सड़कों पर दंगों में नरसंहार होता है, एक देश की सेना दूसरे देश पर कहर बरपाती है, लाखों मासूम मारे जाते हैं। यह सब जायज है, नाजायज है तो सिर्फ प्रेम करना।
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‘महान’ देशों की ‘महान’ सभ्यताओं और संस्कृतियों ने इतने ‘महान’ काम किए हैं कि आपको ‘गर्व’ है। इतिहास इनके क्रूरता का गवाह है। संस्कृती के नाम पर मार दिए गए प्रेमी, जला दी गई कितनी ही बेटियां। प्रेमी के साथ खिलखिलाती बेटियों की हंसी पिताओं को चुभती है लेकिन दहेज के लिए जला दी गई बेटियों पर पिता चुप्पी साध लेते हैं। आजादी से प्रेम जीने वाली लड़कियां जब मां बनती है तो बेटियों को सिखाती है बेड़ियों और हदों में रहना।
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एक सनकी अपनी साथी की निर्मम हत्या पर देता है और पूरा समाज प्रेम को अवैध ठहराने में लग जाता है। यानी एक हत्या सैंकड़ों घरेलु हिंसा, प्रताड़ना और बलात्कार को जायज कर देता है? ये सवाल पूछिए खुद से फिर कीजिए ‘गर्व’ अपनी ‘महान’ सभ्यता और संस्कृति पर जिसने कई प्रेम कहानियों का कत्ल किया है।
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हरिशंकर परसाई ने सालों पहले कहा था ‘जाति है कि जाती नहीं’। दशक बीत गए ना जाति कहीं गई, ना प्रेम करने वाले। अपनी ही जातियों में ब्याही गईं बेटियां, बेटों को बांंध दिया गया दहेज के खुंटे से। परिवार की ‘प्रतिष्ठा’ की खातिर शादी करने वाले बच्चों और बच्चों की खुशियां छिनने वाले पिताओं को समाज ने दी शाबाशी, और बगावत करने वाले युगलों को दी गई गालियां। समाज ने कर दिया प्रेमियों को निष्कासित और कर लिया संस्कृति पर ‘गर्व’। मनाया गया जश्न, जलाए गए पटाखे गैर-प्रेमियों की शादी पर।
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लड़के को लड़के से प्रेम करने से रोका गया, लड़की ने लड़की के साथ घर बसाना चाहा तो भारी विरोध हुआ। सालों से चले आ रहे इस सभ्यता के धकोसलों में अब दरार आने लगी है। सदियों से हत्याओं के बाद भी नहीं खत्म हुआ प्रेम, ना ही खत्म हुए प्रेमी। हत्याओं पर ‘गर्व’ सिर्फ हत्यारा बना सकता है, लेकिन प्रेमियों से प्रेम आपको प्रेमी बना सकता है। चुनाव आपका है!
नोट - इस लेख में विचार मेरे खुद के हैं, कोई किसी सभ्यता का ठेकेदार चाहे तो ऑफेंड हो सकता है।
heart touching writeup
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